________________ 22] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ===== ==== ======== जल फल आठ दरव ले उत्तम, पूजत भविजन मन हरषाय। अर्घ देत भवि लाल मनोहर, श्री जिनवर पद सीस नवाय॥ चैत्याले. // 12 // ॐ ह्रीं. ॥अर्घ। अथ प्रत्येकाघ-दोहा मेरु सुदर्शन पूर्व दिश, भद्रशाल वन जान। तहां जिन भवन सुहावने, अर्घ जजो धर ध्यान॥१३॥ ___ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी पूर्वदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ मेरु सुदर्शनते गिनो दक्षिण दिश सुखदाय। भद्रशालवनके विषै जिन पूजो हरषाय॥१४॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ मेरु सुदर्शनते सुले, पश्चिम दिशा अनूप। भद्रशाल वन जिन भवन पूजत सुरगण भूप॥१५॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ मेरु सुदर्शनसे गिनो, उत्तरदिश सुखकार। भद्रशालवन जिन भवन, अर्घ जजो भर थार॥१६॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ मद अवलिप्त कपोल छन्द मेरु सुदर्शन पूरवदिशमें, नंदनवन शोभै सुविशाल। तहं जिन भवन अनूपमसो है, सुरपति नरपति नमत त्रिकाल॥