________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [21 WIKINIraniaNPNEWwrsaree चंदन अगर कपूर मिलाकर, मलयागिर घसिये मन लाय। भव आताप निवारन कारण, श्रीजिन सम्मुख देत चढाय॥ चैत्याले. ॥५॥ॐ ह्रीं. ॥चन्दनं॥ देवजीर सुखदाससु अक्षत, मुक्ताफल सम उज्जल सार। श्रीजिन चरण कमलतल सन्मुख,पुंज देत अतिहरख अपार॥ चैत्याले. // 6 // ॐ ह्रीं. ॥अक्षतं॥ कमल केतुकी फूल मनोहर, अरु गुलाब सुन्दर महकाय। करुना आदि फूल बहु तरुके, पारजात मन्दार सुलाय॥ चैत्याले. // 7 // ॐ ह्रीं. ॥पुष्पं॥ फेनी घेवर मोदक ताजे, खाजे गोझा धरो बनाय। श्रीजिन सन्मुख रतन थाल भर, जजत जिनेश्वर मन हरषाय॥ चैत्याले. // 8 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं // जगमग जोत होत दीपककी, ऐसे रत्न अमोलिक सार। कंचन थार संवार दीपद्युति, जिनचरणन पर लेले वार॥ चैत्याले. ॥९॥ॐ ह्रीं. ॥दीपं॥ कृष्नागर वर धूप सुगंधित, दस विधि वरणी परम विशाल। श्रीजिन सन्मुख अग्निदाह कर, छिनमैं करम जलैं तत्काल॥ चैत्याले. ॥१०॥ॐ ह्रीं. ॥धूपं // श्रीफल लौंग सुपारी भारी, पिस्ता नये सु लीजे सार। श्रीजिन चरणचढावत भविजन,पावत मोक्षसुफल सुखकार॥ चैत्याले. ॥११॥ॐ ह्रीं. // फलं॥