________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [23 188888888881 अष्टद्रव्यसों पूजाकर कर, नाचत थेइ थेइ पग अवधार। जे नर ध्यावत पुन्य बढावत,पावत शिव-संपत सुखकार॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके नन्दनवन सम्बन्धी पूरवदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ मेरु सुदर्शन दक्षिणदिशमें नन्दनवन सो है सु विचार। तहां जिनभवन अकीर्तमसुन्दर, सुरगण मोहितरूप निहार॥ केई गावत केइ ताल बजावत,नाचत उर धर हरष अपार। अरघ चढावत पुन्य बढ़ावत, शब्द उचारत जय जयकार॥ ____ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके नन्दनवन सम्बन्धी दक्षिण दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ॥ मेरु सुदर्शन पश्चिम दिशमैं नंदनवन मन मोहै सार। जहां जिनबिंब विराजै अद्भुत, जैसे जिनमंदिर सुखकार। तिनको ध्यान देखकर मुनिगण,निज स्वरूपअपनोसुनिहार। करम कलंक पंक नित धोवत,भविजन तिनको अर्घ उतार॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके नन्दनवन सम्बन्धी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ मेरु सुदर्शन उत्तर दिश गिन, नंदनवनमें मंदिर जान। जहां जिनबिंब अनूपम सोहै, इन्द्रादिक पूजत हैं आन॥ सुर सुरांगना अरविद्याधर, सब मिल जिनगुण गावत सार। यह कौतुक बन रहो सुनिशदिन,पूजत जे पावत भवपार॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके नन्दनवन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ॥