________________ 264] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान = = = = = = = = = = = विद्युतगिर पश्चिम विजयारध, षोड़श हैं सुखदाई। तिनपर षोड़श श्री जिनमंदिर पूजो भविजन भाई॥३॥ ॐ ह्रीं विद्यन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी पद्मा // 1 // सुपद्मा॥२॥ महापद्मा // 3 // पद्मकावती॥४॥ सुसंखा // 5 // नलिना॥६॥ कुमदा॥७॥ सरिता // 8 // वप्रा॥९॥ सुवप्रा // 10 // महावप्रा // 11 // वप्रकावती॥१२॥ गंधा॥१३॥ सुगंधा॥१४॥ गंधला॥१५॥ गंधमालनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥ चंदन सरस सुगंधित लेकर, तामें के सर गारो। भव आताप निवारन कारन, श्रीजिन आगै धारौ॥ भला जिन. विद्युन्गिर. // 4 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ देवजीर सुखदास सु अक्षत, उञ्जवल धोय धरीजै। श्रीजिनराज चरनके आगे, पुंज मनोहर दीजे // भला जिन. वि. गिर. // 5 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ वरन वरनके फूल सुवासी ले जिनमंदिर आवो। कामबाणके दूर करनको, श्री जिन चरन चढावो॥ भला जिन. वि. गिर. // 6 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // नेवज नीको तुरत सुधीको, रसना रंजन भाई। कनक थार भर ऊंचे कर कर, पूजत श्री जिनराई॥ भला जिन. वि. गिर. // 7 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ रत्न अमोलिक कनक रकाबी, में घर दीप बनावो। करत आरती श्री जिनवरकी, परम प्रीत उर लावो॥ भला जिन. वि. गिर. // 8 // ॐ ह्रीं. // दीपं॥