________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [265 arwarsawraharaswarrarwarsa दश विध धूप सुवास सरस ले, श्री जिन आगै खेवो। कर्म महारिपु दूर करनको, श्री जिनवर पद सेवो॥ भला जिन. वि. गिर. // 9 // ॐ ह्री. // धूपं॥ श्रीफल लौंग छुहारे पिस्ता अरु बादाम मंगावो। श्री सर्वज्ञ जिनेश्वर पूजो, मनवांछित फल पावो॥ भला जिन. वि. गिर. // 10 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल आठों दर्व मिलाकर, अर्घ बनाय सु लावो। भाव भक्तिसों श्रीजिन पूजों हरष हरष गुण गावो॥ भला जिन. वि. गिर. // 11 // ॐ ह्रीं. // अर्घ॥ अथ प्रत्येकार्घ-अडिल्ल विद्युन्माली मेरु तनी पश्चिम दिशा। पद्मा देश महान, तहां सूवस वशा॥ श्वेतवरन वैताढ़, शिखर जिन धाम जू। पूजों अष्ट प्रकार, तजों सब काम जू॥१२॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी पद्मा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // विद्युन्मेरु विशाल, दिशा पश्चिम जहां। देश सुपद्मा नाम, बसैं बहुजन तहां॥ विजयारध गिर शीश, श्री जिन गेह जू। वसुविध अर्घ बनाय, जजो धर नेह जू॥१३॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सुपद्मा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥