________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [263 ParasaaraarerNaaraarararare ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी षोडश रुपाचल ___ गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो पूजा सम्पूर्णम्। अथ विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी षोडश रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 50 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द विद्युन्माली मेरु पंचमो, ताते पश्चिम दिश उर आन। तहां षोड़श वैताड़ मनोहर, श्वेतवरन मनहरन सुजान। तापर श्रीजिनभवन अनूपम, जहां विराजै श्री भगवान। सुर विद्याधर पूजैं तिनको, पावत मोक्ष परम सुख थान॥ सोरठा-हमैं शक्ति सो नाहिं आह्वानन तिनको करें। पूजै निज घरमाहिं, भक्तिभाव उरमें धरै // __ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह षोडश रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं, स्थापनं। अथाष्टकं-जोगीरासा भला जिन पूजो रे भाई। यह उत्तम नरभव पायकै जिन पूजो रे भाई॥ टेक॥ क्षीरवरन मन हरन सु उञ्जवल, झारी भरकर लावो। श्रीजिनराजचरनको पूजो,जनमजनमसुखपावो॥भला जिन.