________________ 262] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान === == ==== = 8 जै चौथा काल रहै सदीव, सब पुन्य पुरुष उपजै सु जीव। जै कर्मभूम वरतै सु रीत, भवि जीव तरै वसु कर्म जीत॥ जै क्षेत्र बीच सुन्दर स्वरूप, वैताड़ पडो षोड़श अनूप। जै श्वेतवरनशशिकिरण जान,मानोचंद्रकांतिमणि गिर प्रमान॥ जैतापर जिनमंदिर विशाल,जै कनक वरन मणि जडितलाल। जै ध्वजपंकत सोहै उतंग मनहरन कलश कंचः सुरंग॥ जै प्रातिहार्य मंगल सु दर्व जै समोसरन रचना सु सर्व। जै सिंहासनपर कमल जान, सत आठ अधिक प्रतिमा प्रमान॥ जै सुरपति विद्याधर महान, जै पूजत श्री जिन चरण आन। इंद्रानी निरजरनी सु आय, जिनराज दरश देखें बनाय॥ जै जिन गुण गावै मधुर गान, इंद्रादिक नाचें तोर तान। सुर ताल मृदंग सबै समाज, बाजे बाजत मीठी अवाज॥ जै चतुर निकाय सु देव आय, निजर वियोग कौतुक कराय। जै पूजा कर निज थान जाय, भनिलालजीत बलर सुजाय॥ घत्ता-दोहा पूरव दिश वैताड़की, पूजा पूरन जान। जो वांचै मन लायकैं, पार्दै अविचल थान // 37 // इति जयमाला। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिनभवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥