________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [261 unununununununununNRUFURNrururururu विद्यूत पूरव जान, रम्या देश सुहावनो। रुपाचल जिन थान, वसु विध पूजो भावसों॥२४॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी रम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ // पंचम गिर सुखकार, पूरव देश सुरम्य है। अर्घ जजू भर थार, जिनमंदिर विजयारधके // 25 // ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी सुरम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 14 // अर्घ // विद्युन्माली मेरु के पूरव रमणी देशमें। विजयारध गिर हेर, श्री जनिमंदिर नित जजों॥२६॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी रमणी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ // सुन्दरी छन्द मेरु विद्युन्माली जानिये मंगलावती देश वखानिये। रूपागिरिजिन भवन रिशालज,अरघलैंपूजत भविलालजू॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ // अथ जयमाला - दोहा श्वेत वदन षोड़श लसैं, रूपाचल सु विशाल। तिनपर श्री जिनभवन हैं तिनकी यह जयमाल // 28 // पद्धडी छन्द जै विद्युन्माली मेरु जान, जै कनक वरन सुन्दर महान। जै ताकी पूरव दिश मंझार, जै षोड़श देश विदेह सार॥