________________ 260] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान =================== विद्युनगिरते पूर्व है, देश पुष्कला जान। गिर वैताड सु शिखर चढ़ पूजो श्री जिनथान // 18 // ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी पुष्कला देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ पुष्कलावती देशमें, रुपाचल गिर जोय। मेरू पूर्व मंदिर सु जिन जजों अष्ट मद खोय॥१९॥ ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी पुष्कलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ॥ विद्यन्माली नाम, पूरव वक्षा देश है। जिनमंदिर अभिराम, विजयारध गिरिपर जजों॥२०॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी वक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 9 // अर्घ॥ देश सुवक्षा सार, पूरव विद्युन्मेरु तैं। श्री जिनभवन निहार, पूजो गिर वैताड़ पर॥२१॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी सुवक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 10 // अर्घ॥ विद्युत पूरव द्वार, देश महावक्षा वसैं। जिनमंदिर सुखकार, रूपाचल पर पूजिये // 22 // ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी महावक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्थ // वत्सकावती देश, पूरव पंचम मेरु के / रुपाचल गिर देश, तापर जिनमंदिर जजों॥२३॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी वत्सकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ //