________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [259 arerarararararareranaaraahaareKarana अथ प्रत्येकार्घ - दोहा विद्युतगिर पूरव दिशा, कक्षा देश महान। रूपाचलपर जिनभवन, अर्घ जजों धर ध्यान // 12 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी कक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // पूरव विद्युतमेरु ते, देश सुकक्षा सार / जिनमंदिर वेताड़ पर पूजो अर्घ संभार // 13 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी सुकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // देश महाकक्षा लसै मेरु पूर्व दिश ओर। विजयारध जिन गेह लख, अर्घ जजों कर जोर // 14 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी महाकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ पूरव पंचम मेरु के कक्षकावती देश। विजयारधपर जिन सु गृह, पूजो अर्घ विशेष // 15 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी कक्षकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ पंचमगिर पूरव लसै, देश आवर्ता नाम। विजयारधके शिखरपर, पूजो जिनवर धाम // 16 // ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी आवर्ता देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ मेरु सु विद्युन पूर्व दिश, रुपाचल गिर शीश। मंगलावती देश मैं पूजों पद जगदीश // 17 // ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ //