________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [249 SNNNNNNNNNNNNNNNNNNN तापर जिनवर धाम अमर खग नित जजै, हम पूजत तज काम अर्घ ले गुण भजै॥१३॥ ___ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी पद्म नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // विद्युन्माली मेरु दिशा पूरव बनी, नलिन नाम वक्षार विराजित ति घनी। स्वयम् सिद्ध जिनधाम रतन प्रतिमा जहां, पूजै मनवचकाय भविक वसुविध तहां // 14 // ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी नलिन नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्थ॥ दोहा-विद्युतगिर पूरव दिशा, गिर त्रिकूट वक्षार। तापर जिन मंदिर बने, अर्घ जजो भर थार॥१५॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी त्रिकूट नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्थ // पूरव पंचम मेरुके, प्राच्य नाम वक्षार। तहां जिनमंदिर निरखक, पूजो अर्घ संभार // 16 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी प्राच्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ // पंचम मेरू सुहावनो, पूरव दिश अभिराम। नाम वैश्रवण शिखर पर, पूजो जिनवर धाम॥१७॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी वैश्रवण नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥