________________ 250] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान विद्युन्माली मेरुके, पूरव दिशा विशाल। अंजनगिरपर जिनभवन, अर्घ जजत भवि लाल॥१८॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी अंजनगिर नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्धं // दोहा-विद्युन्माली पूर्व दिश, गिर वक्षार विशाल। तिनपर जिनमंदिर जजो, अब वरनूं जयमाल // 19 // जयमाला - पद्धडी छन्द जै विद्यन्माली मेरू सार, जै ताकी पूरव दिश निहार। तहां षोड़शदेश विदेह थान, तहां चौथो काल विराजमान॥ जै तीर्थंकर दो विरहमान, श्री वीरसेन महाभद्र जान। उत्कृष्ट जीव उपजैं अपार, चक्री हलधर प्रतिहर मुरार॥ जै श्री मुनिराज करै विहार, धर्मोपदेश भार्षे विचार। श्रावक सम्यग्दृष्टि अशेष, व्रतशील दया पालैं विशेष // वक्षार आठ गिर परो आय, तिसपर जिनमंदिर जगमगाय। जै रतनजड़ित कंचन सुरंग, वेदीपर कलसा अति उतंग॥ मणिमई प्रतिमासु विराजमान,सतआठअधिकजिनवर वखान। तिहूँकाल सचि पति नमत आय, वसुदर्व सहित पूजत सुपाय॥ खेचर खेचरनी लख स्वरूप, निज जन्म सफल मानत सुभूप। निरजर निरजरनी करत गान, सौधर्म सची तोरत जुतान॥ सुर नृत्य करैं बाजे बजाय, जिनराज समी निरखें अघाय। जिनचरनकमलपर शीसनाय,भविलालसदा बलबलसुजाय॥