________________ 248] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान NNNNNNNNNNNNNNNNNNNN लौंग छुहारे पिस्ता नीके, अर बादाम सु लावो। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, मोक्ष महाफल पावो॥ पंचम मेरु. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल अर्घ बनाय गाय गुण, पूजत श्रीजिनजीको। बल बल जात लाल चरननपर, यह कारज है नीको॥ पंचम मेरु. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ॥ अथ प्रत्येकाघ-अडिल्ल छन्द विद्युन्माली मेरु दिशा पूरव कहा, गिर पश्चात्य सु नाम सरस सुन्दर जहां। तापर श्री जिनभवन रतनमई मन हरै, वसुविध अर्घ संजोय भविक पूजा करें // 11 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी पश्चात्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ विद्युन्माली मेरु दिशा पूरव लई, चित्रकूट वक्षार सु गिर कंचन मई। जिन मंदिर गिर शीष विराजत सोहनो, पूजो अर्घ चढ़ाय भविक मनमोहनो॥१२॥ __ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी चित्रकूट नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // विद्युन्माली मेरू नाम पूरव कहो, पद्म नाम वक्षार अधिक उपमा कहों।