________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [247 पंचम मेरु तनी पूरव दिश, वसु वक्षार जु सोहै। तिनपर श्री जिनभवन अनूपम, सुर नरके मन मोहै। ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरवविदेह संबंधी पश्चात्य // 1 // चित्रकूट // 2 // पद्म॥३॥ नलिन // 4 // त्रिकूट // 5 // प्राच्य / / 6 / / वैश्रवण // 7 // अंजन नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ मलयागिर करपूर सु चंदन, अरू केशर घस नीकी। पूजा करत हरष उर धरके, श्री जिनवर प्रभुजीकी॥ __पंचम मेरु. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ देवजीर सुखदास सु अक्षत, मुक्ताफल सम लीजे। जजत जिनेश्वरके पद पंकज, पुंज मनोहर दीजे // पंचम मेरु. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कमल केतकी जुही चमेली, श्री गुलाब तहां महकै। पूजत चरन कमल जिनवरके परम सुगंधित लहकै॥ पंचम मेरु. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // नानाविधके जिन ताजे, खाजे तुरत बनावो। हाथ जोड श्री जिनवर आगे, पूजत मन हरषावो॥ पंचम मेरु. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं // मणिमई दीप अमोलिक लेकर, श्री जिन चरन चढ़ावै। मोह तिमिरके दूर करनको, और उपाय न पावै॥ पंचम मेरु. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं // कृश्नागर करपूर मिलाकर, धूप दशांगी खेवो। अष्ट कर्मके जारन कारन, श्री जिनवर पद सेवो॥ पंचम मेरु. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं॥