________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [245 warrarshanarararararirararararararars पद्धडी छन्द जै विद्युन्माली मेरु सार, जै कंचनवरन सु रंग धार। जै ताकी उत्तरदिश ईशान, तरु जम्बूतरु सोहै महान॥ नैऋत्य कौन दक्षिण विशाल, तहां शाल्मली द्रुम है रिशाल। जै जुगमवृक्ष पिरथी जु काय, रचना अनादि वरनी न जाय॥ जै चारों दिश शाखा जु चार, फल फूल पत्रयुत सघन डार। पूरवदिश शाखापर सु जान, जै श्री जिनभवन विराजमान॥ जै समोसरण रचना प्रमान, सत आठ अधिक प्रतिमा प्रमान। जै रतनमई द्युति है विशाल, सुर विद्याधर पूर्जे त्रिकाल॥ वसु प्रातिहार्य मंगल सु दर्व, है यथायोग्य थानक जु सर्व। प्रभु तुमगुण महिमाअगम अपार,वरनत सुरगुरु पावै न पार॥ हम पूजत यों निज शीष नाय, वसु दर्व सरस सुन्दर बनाय। श्रावक श्रावकनी हर्ष धार, जिनराज दरश नैनन निहार। मुख पाठ पढ़े जै जै जिनेन्द्र, तुम चरनकमल वंदत सुरेंद्र। कर जोर शीष नावत सुलाल, भवसिंधु पार कीजे दयाल॥ घत्ता-दोहा जम्बू शाल्मली तनी, पूजा सरस विशाल। जो वांचैं मन लायके, तिनके भाग विशाल॥२१॥ इति जयमाल। अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द / मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥