________________ 244] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==== ==== ==== === मणिमई दीप अमोलिक लेकर, कनक रकाबी धारो। श्री जिनमंदिर पूजन जइये, जगमग होत दिवालो॥ सुकारन॥ विद्युन्माली. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं / / कृश्नागर करपूर मिलाकर, दस विध धूप बनाओ। श्री जिनवरके आगै धरके, खेवत पुन्य बढ़ाओ॥ सुकारन॥ विद्युन्माली. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं॥ श्रीफल अर बादाम छुहारे, पिस्ता लौंग सुपारी। जजत जिनेश्वर मन वचतन भवि, पावै शिवफल भारी॥ सुकारन॥ विद्युन्माली. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं // जल फल अर्घ बनाय गाय गुण, नाचत ताल बजाय। बल बल जात लाल चरनपर, पूजत मन हरषावै॥ सुकारन॥ विद्युन्माली. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ॥ अथ प्रत्येकार्घ - दोहा उत्तर कौन ईशान, विद्युन्माली मेरूते। जिनमंदिर धर ध्यान, जम्बू तरुवर नित जजो॥११॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरूके उत्तर दिश ईशान कौन जम्बूवृक्षकी पूर्व शाखापर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ दक्षिण कौन नैऋत्य, विद्युन्मालीसे गिनो। जिनमंदिर सु पवित्र, शाल्मली द्रुमपर जजो॥१२॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरूके दक्षिण दिश नैऋत्य कौन शाल्मली वृक्षकी पूर्व शाखापर सस्थित सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा विद्युन्माली मेरु ढिग, जुगम वृक्ष सु विशाल। तिनपर जिनमंदिर बने, तिनकी सुन जयमाल // 13 //