________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [227 NURINDRINIRINcorrrrrrrrr कृश्नागरकी धूप सु दशविध, जिनचरनन ढिग खेवत जाय। इन कर्मनके नाश करनको, जिनपद पूजत मन हरषाय॥ मंदिर. // 8 // ॐ ह्रीं. ॥धूपं॥ श्रीफल दाख छुहारे पिस्ता, लौंग लायची लावत हैं। भविजन पूजत जिनचरणनको, मनवांछित फल पावत हैं। मंदिर. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल आठों दर्व सु लेकर, अर्घ बनावत भर थारी। श्री जिनचरण चढ़ाय गाय गुण, लाल सदा जिनपर वारी॥ मंदिर. // 10 // ॐ ह्रीं. // अघु।। __ अथ प्रत्येकार्घ-दोहा मंदिरगिर दक्षिण दिशा, कुलगिर निषध सु जान। तापर जिनमंदिर बनो, पूजो अर्घ महान // 11 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिणदिश निषध पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ ___ चाल-जोगीरासा मंदिर गिरकी दक्षिण दिशमें, कुल गिरि दूजो भाई। नाम महाहिमवन ता ऊपर जिन मंदिर सुखदाई॥ जजत जिनेश्वरके पद पंकज, तन मन प्रीत लगाई। भाव भगतसों करत महोत्सव, भविजन मिल हरषाई॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिणदिश महाहिमवन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२।। अर्घ मंदिरगिर दक्षिण दिश ओर, हिमवन कुलगिर तहां जोर। जापर जिनमंदिर सो है, पूजत भविजन मन मोहै // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिणदिश हिमवन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ //