________________ 226 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ANWASANANrvNrvNrvNrNASANNANKINNN अथाष्टकं-छन्द उज्वल जल निर्मल अति शीतल, रतन सु झारी ले भर आन। श्री सर्वज्ञ जिनेश्वरके पद, पूजैं भविजन उर धर ध्यान // मंदिर गिरकी दक्षिण उत्तर, षट्कुल गिरि जिनभवन महान। सुर विद्याधर करत महोत्सव, जजत जिनेश्वर श्री भगवान॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिण दिश निषध॥१॥ महाहिमवन॥२॥ हिमवन // 3 // उत्तर दिश नील॥४॥ रूक्म॥५॥ शिखरिन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ जलं॥ मलयागिर करपूर सु चंदन, अरु केसर ले धरकर मांहि। भव आताप सु दूर करनको, श्री जिनवर पद पूजन जाहि॥ मंदिर. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं। अक्षत चन्द्र किरन सम उज्जल, मुक्ताफलकी है उनहार। पूजत श्री जिनराज प्रभुको, अखय हेतु मन हरष अपार // मंदिर. 4 // ॐ ह्रीं. / / अक्षतं॥ वरन वरनके फूल सुगंधित ले जिनमंदिर आवत हैं। भाव भगत सों पूजा करके, जिन गुण मंगल गावत हैं। ___ मंदिर. // 5 // ॐ ह्री. // पुष्पं // षट्रस पूरित रसना रंजन, विंजन तुरत बनावत हैं। क्षुधारोगके दूर करनको, श्री जिनचरन चढ़ावत हैं। मंदिर. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ जगमग जोति होत मंदिरमें, रत्न अमोलिक आन धरे। दीपक सों पूजै जिनवर पद, भवसागरते पार तरे // मंदिर. / / 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं॥