________________ 192] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान अथ मंदिरमेरुके उत्तर ईशान कौन जंबूवृक्ष अर दक्षिण नैऋत्य कौन शाल्मली वृक्ष पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 36 __ अथ स्थापना-जोगीरासा मंदिरमेरु बनी उत्तर दिश, कौन ईशान जु सोहै। दक्षिण दिश नैऋत्य कौन लख, सुरनरके मन मोहै। जम्बू शालमली शाखा पर, श्री जिनभवन सुहाई। तिनकी आह्वानन विध करकै, पूजों भविजन भाई॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके उत्तर दिश ईशानकोन जम्बूवृक्ष और दक्षिणदिश कौन नैऋत्य शालमली वृक्षकी पूर्व शाखा पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं स्थापनं। अथाष्टकं-जोगीरासा छन्द सरस मनोहर नीर सु लेके, श्री जिन पूजन जइये। निरख छबी सुन्दर जिनवरकी, धार देत सुख पइये॥ जम्बू शालमली शाखापर, श्री जिनमंदिर सोहै। तिनमें श्री जिनबिंब अकीर्तम, निरख२ मन मोहै॥१॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके उत्तर दिश ईशानकोन जम्बूवृक्ष // 1 // दक्षिणदिश नैऋत्य कोन शालमली वृक्षपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ जलं॥ मलयागिरि चंदन केसर ले, दोऊ एक मिलावो। श्री जिनवरपद पूजत भविजन, भव आताप मिटावो॥ जंबू शालमली. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥