________________ ___ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [ 191 == = == == === === = == जै तिनपर जिनमंदिर अनूप, हैं रत्नमई सुन्दर स्वरूप। जैतहां जिनबिंब विराजमान,प्रतिमा सतआठ अधिक प्रमान॥ जै प्रातिहार्य विध रही छाय, सब मंगल दर्व रचे बनाय। जै सर खग इंद्रादिक जु सर्व सज सज विभूत ले ले सुदर्व॥ जै पूजा कीनी प्रीत लाय, जिनराज सु गुण गाए बताय। फुन नृत्य कियो नानाप्रकार, मुखपाठ पढै जै जै सु कार॥ बाजै झांझर बीनी सु चंग खेचर खेचरनी नचैं संग। छमछमछमछम धुंघरू बजंत, ठमठमक ठमक जुग पगधरंत॥ जै थेई थेई थेई धुन रही पूर, बन रहो सु झुरमुट जिन हजूर। जिनराज सभी नैनन निहार, निरजरपति नैन किये हजार॥ अस्तुति करकर बहु भक्ति ठान निज२ थानक सब गए जान। जगमें जैवंते होहु देव तुम चरणनकी हम करें सेव॥ घत्ता-दोहा-पूजा श्री गजदन्तकी पूरण भई विशाल। वांचौ भविजन भावसों, लाल नवावत भाल॥ अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति इत्याशीर्वादः इति श्री पुष्करार्द्ध दीप मध्ये मंदिरमेरुके चारों गजदन्त पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।