________________ 190] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==== == ========== = मंदिर दिश नैऋत्य सकल सुख ठाम हैं, विद्युतप्रभ गजदंत तासको नाम हैं। ताके शिखर विराजत श्री जिन धाम जू, वसु विध अर्घ चढाय करत परजाम जू॥१२॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके नैऋत्यदिश विद्युतप्रभ नाम गजदंतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ मंदिर मेरु महान दिशा वायव्य केही, मालवान गजदंत तहां सोहै सही। तिस ऊपर जिनभवन सु परम विशाल जू, वसु विध अर्घ बनाय जजत नम माल जू॥१३॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके वायव्य दिश मालवान नाम गजदंतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ मंदिर दिशा ईसान अधिक शोभा जहां, धरे सुगंध अपार गंधमादन तहां। है गजदन्त सु नाम शिखर जिनधाम जू, पूजो अर्घ चढाय छोड सब काम जू॥१४॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके ईशान दिश गंधमादन नाम गजदंतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // अथ जयमाल मंदिरमेरु सुहावनो तहां गजदन्त विशाल। तिनपर जिन मंदिर जजों अब वरनूं जयमाल // 15 // पद्धडी छन्द जै जै श्री मंदिरमेरू सार, है कंचन वरण सु द्दग निहार। जै ताकी विदिशामें विशाल, चारों गजदंत बने रिशाल॥