________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [183 मुक्ताफलकी उनहार, अक्षय धोय धरो। पूजो जिनचरण निहार, सन्मुख पुंज करो॥ है मंदिर. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ सुरगनके फूल सु लाय, वास सु महक रही। भव पूजो मन हरषाय, जिनवर चरण सही॥ है मंदिर. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // फेनी गोझा सु बनाय, नैनन सुखकारी। पूजत जिनचरण सु जाय, सुन्दर भर थारी॥ है मंदिर. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ मणिमई दीपक सुविशाल, जगमग जोत जगी। पूजो जिनचरण त्रिकाल, तनमन प्रीत लगी। है मंदिर. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं॥ ले दस विध धूप बनाय, सरस सुगन्ध भरी। खेवत जिन सन्मुख जाय, सुन्दर लें सु धरी॥ है मंदिर. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं॥ नानाविध फल भर थाल आनंद राचत हैं। तुम शिवफल देहु दयाल, तो हम जाचत हैं। है मंदिर. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल वसु दर्व मिलाय, अर्घ सु दीजिये। तहां लाल सुबल बल जाय, निजरस पीजीये॥ है मंदिर. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ //