________________ 182] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान NararNNNNNNNNNNNAPrarrore अथ पुष्करार्घ द्वीपकी पूर्वदिश मंदिर मेरु सम्बन्धी षोडश जिनमंदिर पूजा नं. 34 पुष्करा वर दीप मनोहर, ताकी पूरव दिशा बताय। मंदिरमेरु परम सुन्दर छवि, कंचन वरन रही द्युति छाय॥ ताको चारों दिश वन चारों, षोड़श जिनमंदिर सुखदाय। तिनकी आह्वानन विध करकै हम पूजत हैं मंगल गाय॥ ॐ ह्रीं पुष्करार्द्ध द्वीपमध्ये पूरवदिश मंदिर मेरुके सम्बन्धी षोडश जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनं। __ अथाष्टकं चाल छन्द उज्जल जल सरस मंगाय, जिनवर पूजी जैं। तिहु धार देत मन लाय, सन्मुख हूजी जै॥ हैं मंदिर मेरु सु नाम, महिमाको वरनै। जहां षोडश जिनके धाम, सुरनर मन हरनै // 2 // ___ ॐ ह्रीं पुष्करार्द्ध द्वीपके पूर्वदिश मंदिरमेरुके भद्रशाल वन संबन्धी पूर्व // 1 // दक्षिण॥२॥ पश्चिम // 3 / / उत्तर॥४॥ नंदनवन संबंधी पूर्व // 5 // दक्षिण॥६॥ पश्चिम // 7 // उत्तर // 8 // सोमनस वन संबंधी पूर्व॥९॥ दक्षिण॥१०॥ पश्चिम॥११॥ उत्तर॥१२॥ पांडुक वन संबंधी पूर्व // 13 // दक्षिण॥१४॥ पश्चिम॥१५॥ उत्तर दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥ मलयागिर चंदन लाय, केसर रंग भरी। पूजत श्री जिनवर जाय, भवदुख दाह हरी॥ है मंदिर. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥