________________ 184] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान Kareenarararararararararararapearsrareran अथ प्रत्येकार्घ-गीता छन्द मंदिर मेरु पूर्व दिश सार, भद्रशाल वन भू पर धार। तहां जिनभवन अकीर्तम जोय, अर्घ जजू वसु दर्व संजोय॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके भद्रशालवन सम्बन्धी पूर्वदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ मंदिर गिरकी दक्षिण वोर, भद्रशाल वन भूपर जोर। सिद्धकूट जिनमंदिर ताम, अर्घ जजो तजके सबकाम। ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके भद्रशालवन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 2 // अर्घ // मंदिर गिरकी दिशा विशेख, पश्चिम भद्रशाल वन देख। स्वयंसिद्ध जिनभवन निहार, अर्घ जजो भर कंचन थाल। ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके भद्रशालवन सम्बन्धी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 3 // अर्घ // उत्तर दिश मंदिर गिर कहो, भद्रशाल वन भूपर ठहो। देख अकीर्तम श्रीजिन गेह, अर्घ जजो उरमैं धर नेह॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके भद्रशालवन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो।॥४॥ अर्घ / सुन्दरी छन्द मेरु मंदिरकी पूरव दिशा, वन सु नंदन अति सुन्दर लशा। तहां मनोहर श्रीजिन धाम जू, जजत अर्घ करत परिणामजू॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके नंदन वन सम्बन्धी पूरव दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 5 // अर्घ //