________________ 150] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ផលជលផល अथ प्रत्येकार्घ-चौपाई अचलमेरुकी पूरव दिशा, कक्षा नाम देश शुभ बसा। तहां रुपाचलपर जिन धाम, अर्घ जजों तजकै सब काम॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी कक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ देश सुकक्षा नाम प्रधान, अचलमेरुतें पूरव जान। श्री बैताड सिखरजिन भौन, अर्घ जजों करके चिंतौन॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी सुकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // अचलमेरु पूरव दिश सार, देश महाकक्षा सुखकार। गिर विजयापर जिन थान, अर्घ जजों तजके अभिमान॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी महाकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ कक्षकावती देश सु बसै, अचलमेरुतें पूरव लसै। रूपाचलपर श्री जिन धाम, अर्घ चढाय करूं परिणाम॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी कक्षावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // अचलमेरुके पूरव जान, आवर्ता शुभ देश महान। जिनमंदिरमें अर्घ चढाय, विजयारध पर पूजो जाय॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी आवर्ता देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ देश मंगलावती सु सार, अचलमेरुतें पूरव द्वार। वसुविध अर्घ जजों धर ध्यान, गिर बैताड़ सिखर उद्यान॥ __ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ //