________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [151 SPrasharaSrNNNNNNNNNNNN अचलमेरुतें पूरव गाय, देश पुष्कला सुवस बसाय। रूपाचलपर जिन थल जोय, अर्घ जजों वसु दर्व संजोय॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी पुष्कला देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // पुष्कलावती है सुख रास, अचलमेरुतें पूरव वास। श्री जिनमंदिर अर्घ संजोय, रूपाचलपर पूजो जोय॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी पुष्कलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ॥ अचलमेरुके पूरव ठीक, वक्षा देश वसै रमणीक। जिनवर भवन जजो हरषाय, रूपाचलपर अर्घ चढाय॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी वक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ // देश सुवक्षा है घनघोर, अचलमेरुके पूरव वोर। गिर वैताड सिखर जिनथान, अर्घ जजो वसुविध सुखमान॥ __ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी सुवक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ // . अचलमेरुते पूरव कहो, देश महा वक्षा निरवहों। रूपाचल जिनभवन विशाल, अर्घ जजो वसु दर्व संभाल॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी महावक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्धं // दश वत्सकावती जो सही, अचलमेरुके पूरव कही। गिर वैताड शिखरपर जोय, श्रीजिनभवन जजो मद खोय॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी वत्सकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ //