________________ * श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [145 ====== === ===== = == जल चन्दन अक्षत प्रसून ले, नेवज दीप धूप फल सार। अर्घ बनाय जजों श्रीजिनवर, लाल सदा तिनप बलिहार॥ अचलमेरु. ॥१०॥ॐ ह्रीं. ॥अर्घ॥ अथ प्रत्येकार्घ - दोहा शब्दवान वक्षार गिर, अचलकी पश्चिम वोर। ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी शब्दवान नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ अचलमेरु पश्चिम दिशा, विजयवान वक्षार। तापर श्री जिनभवन लख, अर्घ जजों भर थार॥१२॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी विजयवान नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ आसीविष वक्षार है, पश्चिम अचल सुमेर। तहां जिनमंदिर सोहनो, जिनपद पूजो हेर // 13 // ___ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्मिच विदेह संबंधी आसीविष नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // पश्चिम अचल सुमेरुकी, नाम सुखावह जान। श्री जिनमंदिर तासपर, अर्घ जजों धर ध्यान // 14 // ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सुखावह नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्धं पश्चिम दिशा सु अचलकी, चन्द नाम वक्षार। तापर जिनमंदिर जजों, वसुविध अर्घ समार॥१५॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी चन्द्र नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 5 // अर्घ //