________________ 146] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान सूर्य नाम वक्षार गिर, तहां जिनमंदिर देख। अचलमेरु पश्चिम दिशा, पूजत अर्घ विशेख // 16 // ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सूर्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ // अचलमेरु पश्चिम गिनो, गिर वक्षार सु नाग। तहां श्रीजिनवर धाम हैं, अर्घ जजों मद त्याग॥१७॥ __ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी नाग नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ। देव नाम वक्षार पर, स्वयं सिद्ध जिन धाम। पश्चिम अचल सुमेरूतें पूजों भविजन काम॥१८॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी देव नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // अथ जयमाला - दोहा अचलमेरु पश्चिम दिश, गिर वक्षार विशाल। तहां जिनमंदिर पूजके, अब वरनूं जयमाल॥१९॥ ___ पद्धडी छन्द जै द्वीप धातुकी दुतिय मेरु, ताकि पश्चिम दिश अचलमेरु। जै गिरकी पश्चिम दिशा विदेह,तहां चौथो काल सदा गनेह॥ जै तीर्थंकर निवसैं सदीव, जै वज्राधर जिनगुण अतीव। जै चंद्रानन दूजो जिनन्द, मुखचंद्रवरण आनंद कंद। जिनमुखतें दिव्याधुन खिरंत, भविजीव सुनत भवजल तुरंत। लई मुनिव्रत धारै तज अवास, केई श्रावकव्रत पालैं उदास॥