________________ 144] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 22222222222222 मलयागिर चन्दन दाह निकन्दन, केशर डारी रंग भरी। श्री जिनचरण सुपूजत भविजन, भव आताप सु दूर करी॥ अचलमेरु. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ देवजोर सुखदास सु अक्षत, मुक्ताफल सम लीजै। मन वच काय लाय जिनचरणन, पुंज मनोहर दीजै // अचलमेरु. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कमल केतकी वेल चमेली, फैले गन्ध दसों दिसों आय। अमर समूह जजैं जिनवर पद, हम पूर्जे मन वच तन लाय॥ अचलमेरु. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // पुरी पुवा अन्दरसा लाड, फेनी खाजे तुरत बनाय। क्षुधा रोग निवारण कारण, श्री जिनवर पद पूजत जाय॥ अचलमेरु. ॥६॥ॐ ह्री. // नैवेद्यं // जगमग जोत होत दसह दिश, मणिमई दीप अमोलक लाय। करत आरती श्रीजिन आगै, नित्य प्रभु गुण मंगल गाय॥ अचलमेरु. ॥७॥ॐ ह्री. // दीपं॥ अगर कपूर सुगन्ध सु दशविध, फैली परम लता सु अपार। खेवत धूप जिनेश्वर आगै, कर्म जलै चहुँ गत दातार॥ अचलमेरु. // 8 // ॐ ह्रीं. ॥धूपं॥ श्रीफल लौंग सुपारी पिस्ता, किसमिस दाख छुहारे लाय। पूजत फल जिनचरण मनोहर, शिवफल पावत कर्म खिपाय॥ अचलमेरु. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥