________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [143 === = ======== === ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बाढ़े अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पदले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री अचलमेरुकी पूरव दिश आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 26 अथ स्थापना-अडिल्ल छन्द है अचलमेरु वर तीजो, ताकी पश्चिम दिश लीजो। वक्षार आठ गिर हूजो, तापर जिनमंदिर पूजो॥१॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिमविदेह संबंधी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणम्, स्थापनम्। * अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द सरस मनोहर उजल जल ले क्षीरोदध ले लावत जाय। रत्नकटोरीमें सो धरकै, पूजत श्री जिनवरके पाय॥ अचलमेरुके पश्चिम दिशमें गिर वक्षार आठ भवि जान। तिनपर श्री जिन भवन अकीर्तम तहां विराजै श्री भगवान॥ ____ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी शब्दवान // 1 // विजयवान // 2 // आसीविष // 3 // सुखावह // 4 // चन्द्र॥५॥ सूर्य // 6 // नाग॥७॥ देवनाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ जलं॥