________________ 136] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ផល១៩៨៨៨៨៨៨៨៨៨៨៨៨ अथ प्रत्येकार्घ - दोहा जम्बू तरु सुन्दर बनो, दिश सु पूरव जान। शाखा ऊपर जिन भवन, अर्घ जजौं धर ध्यान // 11 // ॐ ह्रीं अचलमेरु के उत्तर दिश ईशान कोन संबन्धी जम्बूवृक्षकी पूर्व शाखापर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // शालमली द्रुम निरखकै, पूरव शाखा सार। तापर जिनवर भवन लख, अर्घ जजों भर थार // 12 // ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिणदिश नैऋत्यकोन संबंधी शालमली वृक्षकी पूर्वशाखापर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ ___अथ जयमाला - दोहा जम्बू शालमली जुगम् वृक्ष सु परम विशाल। तिनपर जिनमंदिर जजो, अब वरणूं जयमाल॥१३॥ पद्धरि छन्द जै अचलमेरु तीजो महान, ताके उत्तर कोन ईशान। पूजो दक्षिण नैऋत्य वोर, तहां वेदी इक इक बनी जोर॥ वेदीकी कटनी तीन सार, कंचनमई वरण लखो निहार। तिस ऊपर सोहै भूपवृक्ष जम्बू अर शालमली प्रत्यक्ष॥ दोऊ तरु पृथ्वीकाय सार, चारो दिश शाखा कही चार। दक्षिण पश्चिम उत्तर कि डार, विंतरवासी सूर रहे लार॥ पूरवकी शाखापर पवित्र, श्री सिद्धकूट मंदिर विचित्र। सब समोसरण रचना समान, वसु मंगल द्रव्य धरे सु जान॥