________________ 102] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==================== जै रचना समोशरण समान, वसु मंगल द्रव्य विराजमान। जै वेदीकी कटनी विचित्र, जै सिंहासन सोहैं पवित्र // जैतापर कमल रच अनूप, तहां राजै श्री जिनराज भूप। सत आठअधिक जिनबिंबसार, लख रूपहोत आनंद अपार॥ तहां खेचर खेचरनी सु आय, गुनगान करें बाजे बजाय। जै नृत्य करें संगीत सार, विद्या बल रूप अनेक धार॥ जिनबिंब सुनिरखत नैन लाय,निज जन्मसुफलमानत बनाय। अतिहर्ष सहित पूजत जिनेश, फुनि पाठ पढ़त बहुविधखगेश॥ जै जै जै जिनवर परम देव, तुम चरणनकी हम करत सेव। जै तुम गुण महिमा अगम सार, वरनत हम कैसे लहैं पार॥ पर भक्त लीन तुमको सु ध्याय, पूजत तुम पद आनंद बढाय। जगमें जयवंते होय देव, हम करे सदा तुम चरण सेव॥ भव जीवनकी यह अरज आन, भव भव तुम सेवा मिलै आन। किजै किरपा हमपर दयाल, करजोर शीश नावत सुलाल॥ घत्ता-दोहा-विजयमेरुके पूर्वदिश, रूपाचल जिन थान। सुर खगपति पूजत सदा, लहत सु पद निर्वाण॥ इति जयमाला। अथाशीर्वाद (कुसुमलता छन्द) मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बाढ़े अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री विजयमेरुकी पूरव विदेह सम्बन्धी षोडश विजयार्द्ध पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।