________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [103 SarararSararaharasharaSaawarsh अथ विजयमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी षोडश रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 18 अथ स्थापना - अडिल्ल छन्द विजयमेरुके पश्चिम दिशा वखानिये। तहां षोड़स बैताड़-सरस उर आनिये॥ तिनपर श्री जिनभवन विराजत सार जू। आह्वानन विध करत हरष उर धार जू॥१॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी षोड़श वैताड़ गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं। स्थापनं। अथाष्टकं चाल-कार्तिकीकी प्राणी श्री जिनवर पद पूजिये इन्द्रादिक पूजत पाय। प्राणी श्री जिनवर पद पूजिये टेक। प्राणी उज्ज्वल जल सु मंगायके, क्षीरोदधकी उनहार। प्राणी श्री जिनवर पद पूजिये प्राणी श्री जिन चरण चढाईये, दुख जनम जरा निरवार॥ प्राणी श्री जिनवरपद पूजिये।। प्राणी विजयमेरु पश्चिमदिशा षोड़श रुपाचल जान। प्राणी तिनपर जिनमंदिर कहे सुर खग मिल पूजत आन। प्राणी श्री जिनवर पद पूजिये॥३॥ ____ॐ ह्रीं विजय मेरु के पश्चिम विदेह संबंधी पद्मा // 1 // सुपद्मा // 2 // महापद्मा // 3 // पद्मकावती॥४॥ ससंखा // 5 // नलिना // 6 // कुमदा॥७॥ सरिता // 8 // वप्रा॥९॥ सुवप्रा॥१०॥ महावप्रा // 11 // वप्रकावती॥१२॥ गंधा॥१३॥ सुगंधा॥१४॥ गंधला // 15 // गंधमालनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥