________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान / [101 areraareerNawararakarsaware विजय महागिर सार, पूरव रम्या देश है। अर्घ जजो भर थार, रूपाचल जिन भवन // 23 // ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी रम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥ देश सुरम्या जान, पूरव दिश गिर विषयके। जिन मंदिर धर ध्यान, पूजौ गिर वैताडके // 24 // ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी सुरम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ॥ रमणी देश अनूप, विजय पूर्व दिश सोहनो। पूजत सुर खग भूप, जिनमंदिर वैताडके // 25 // ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी रमणी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ // मंगलावती नाम, देश विजय पूरव वसै। सिद्धकूट जिन धाम, पूजो गिर विजयारध पर॥२६॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ // अथ जयमाला - दोहा विजयमेरु पूरव दिशा, गिर वैताड विशाल। षोडश जिनमंदिर जजों, अब वरनूं जयमाल॥२७॥ पद्धडी छन्द जै विजयमेरु सुन्दर सुजान, ताकी पूरव दिशमें वखान। वहां षोडश देशविदेह सार, ताको वरनत लागै अपार // तहां षोडश गिर वैताड नाम, ताके ऊपर जिनवर सु धाम। जै जिनमंदिरमें देय आय, श्री जिनवर पू0 प्रीतलाय॥