________________ 100] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ASSISTANSENSTEINSharaNavra देश पुष्कला सार, पूरव विजयके जानिये। जिन मंदिर सुखकार, पूजो गिर वैताडके // 17 // ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी पुष्कला देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ विजय पूरव दिश जान, पुष्कलावती देश हैं। रुपाचल जिन था पूजो मन वच कायकर // 18 // ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी पुष्कलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // देख अधिक रमणीक, वक्षा पूरव विजयके। जिन मंदिर तहां ठीक, विजयारध पर पूजिये॥१९॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी वक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्धं // देश सुवक्षा नाम, विजय पूरव दिशमें सही। रूपाचल जिन धाम, पूजो भवि मन हर्षसो॥२०॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी सुवक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥ विजय पूरव दिश सार, देश महावक्षा गिनो। गिर बैताड निहार, पूजो जिनगृह भावसों // 21 // ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी महावक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ // पूरव विजय विशाल, वत्सकावती देश है। पूजत भवि तिहुंकाल, रूपाचल पर जिन भवनजूं॥२२॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी वत्सकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ //