________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [ 99 अथ प्रत्येकार्घ - सोरठा कक्षा देश महान विजयमेरु पूरव दिशा। तहां रूपाचल जान, जिनमंदिर पूजो सदा॥११॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी कक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ देश सु कक्षा सार, पूरव विजय सु मेरूकी। तहां जिन भवन निहार, रूपाचल पर पूजिये॥१२॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी सुकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ विजय सु पूरव ओर, महा सुकक्षा देश हैं। श्री जिनमंदिर जोर, विजयारध पर पूजिये // 13 // __ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी महाकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // कक्षकावर्ती देश, पूरव दिश गिर विजयतें। रूपाचलगिर देश तापर जिनमंदिर जजो॥१४॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी कक्षावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ विजयके पूरव जान, देश नाम आवर्त हैं। श्री जिनभवन महान, विजयारध गिरपे जजो॥१५॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी आवर्त देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ मंगलावती देश, विजयके पूरव दिश कहो। विजयारध गिर वेश, श्री जिनमंदिर पूजिये // 16 // ॐ ह्रीं विजयमेरुके पूरव विदेह संबंधी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ //