________________ 98] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ធផលធមទេសនផផផផផផផផផន देव जीर सुख दासक मोदक, अक्षत धोय बनावत हैं। मुक्ताफल सम सार मनोहर, श्री जिनचरण चढावत हैं। विजयमेरु.॥४॥ ॐ ह्रीं // अक्षतं॥ कल्पवृक्ष सुरतरु ते उपजत, फूल सुगंध रही महकाय। शीस नाय भवि पूजत जिनको, श्रीजिन गुण गावत हरषाय॥ विजयमेरु.॥५॥ ॐ ह्रीं // पुष्पं // फेनी गोझा मोदक खाजे, ताजे तुरत सु लेत बनाय। क्षुधा रोगके दूर करनको, श्री जिनवर पद पूजत जाय॥ विजयमेरु.॥६॥ ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ जगमग जोत होत दीपककी, रत्नमई कञ्चन भर थार। श्री जिन सन्मुख करत आरती, नाचत थेईथेई पद झुनकार॥ विजयमेरु.॥७॥ ॐ ह्रीं // दीपं॥ फेले सरस सुगन्ध दसों दिश, दशविध धुप बनावत लाय। खेवत अगन माहिजिन सन्मुख,वसुविध कर्म जलावत जाय॥ विजयमेरु.॥८॥ ॐ ह्रीं ॥धूपं॥ श्रीफल लौंग बदाम छुहारे, पिस्ता किसमिस दाख मंगाय। रसना घ्राण नैन सुख उपजत, जिनपद पूजत शिवपद दाय॥ विजयमेरु.॥९॥ॐ ह्री. // फलं॥ जलफलअर्घ बनाय गाय गुण,जिन चरणाम्बुज मस्तक नाय। नरनारी निरजर निरजरनी, जै जै शब्द करत हरषाय॥ विजयमेरु.॥१०॥ ॐ ह्रीं. ॥अर्घ॥