________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [ 97 awareneurersarSSNNNNNNN अथविजयमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी षोडश रूपाचलपरसिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 17 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द विजयमेरुके पूरव दिशमें, है रूपाचल गिर अभिराम। सोलह कूटनपर जिनमंदिर रत्नमई जिनवरके धाम॥ तिनमें जिनवर बिंब विराजत सुरखग मिल पूजत तिह ठाम। तिनकी आह्वानन विध करकै, हम पूजत नित करत प्रणाम॥ ___ॐ ह्रीं विजय मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी षोडश रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठर ठः ठः स्थापनं, अब मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणम्, स्थापनम्। अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द क्षीरोदधिको उज्जल जल ले, श्री जिनमंदिर आवत हैं। रत्न कटोरीमें धर कर ले, श्री जिनचरण चढावत हैं। विजयमेरुके पूरव दिशमें, षोड़श देश जु सोहत हैं। रुपाचल पर श्री जिनमंदिर, सुर नरके मन मोहत हैं। ॐ ह्रीं विजय मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी कक्षा॥१॥ सुकक्षा // 2 // महाकक्षा // 3 // कक्षावती॥४॥ आवर्ता // 5 // मंगलावती॥६॥ पुष्कला // 7 // पुष्कलावती॥८॥ वक्षा // 9 // सुवक्षा // 10 // महावक्षा // 11 // वत्सकावती॥१२॥ रम्या॥१३॥ सुरम्या // 14 // रमणी॥१५॥ मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥ मलयागिर चन्दन अरु केसर, ले दोऊ घिसकर धारत है। तन मन भक्ति भाव उर घिसकर,जिन चरणन पर बारत हैं। विजयमेरु.॥३॥ॐ ह्री.॥ चंदनं॥