________________ [प्रकरण-३० ] पूज्य श्री देवद्धिंगणि क्षमाश्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात करीब 980 वर्ष बाद वल्लभीपुर में जिन महापुरुष ने श्रमणों को इकट्ठा करके आगम वाचना करवायी थी और जैनागमों को तालपत्रों पर लिखवाकर सुरक्षित करवाया एवं हमारे तक पहुंचाया उन महोपकारी श्री देवद्धिगरिण क्षमाश्रमण का जीवन कवन इस प्रकार है। देवद्धिगणि पूर्वजन्म में हरिणगमेषी देव थे। प्राकाशगामिनी विद्याधारक चारणमुनि से उसने ऐसी बात जानी कि-"वह दुर्लभ बोधि है किन्तु वे भगवान श्री महावीर देव के शासन की महासेवा जैनागमों को पुस्तकारूढ़ करवाकर करेंगे।" अपने भावि जीवन का वृत्तान्त सुनकर हरिणगमेषी देव ने ऐसी व्यवस्था की कि उसकी मौत के बाद, उसके स्थान पर आने वाला उत्तरवर्ती (अन्य ) हरिणगमेषी देव इसको बोधिलाभ की प्राप्ति करावे / नवोत्पन्न हरिणगमेषी देव ने देवद्धि को बोधिलाभ की प्राप्ति हेतु अनेकों प्रयास किये, किन्तु वह असफल रहा। शिकार खेलने का व्यसनी देवद्धि एक बार शिकार खेलते समय खड्डे में गिर गया / देव ने इसे इस प्रतिज्ञा से बचाया कि वह चारित्र ले। बाद में देवद्धि ने बोधिलाभ पूर्वक चारित्र लिया / आपके सुन्दर चारित्र के पालन से प्रभावित होकर कपर्दियक्ष, चक्रेश्वरी देवी तथा गोमुख यक्ष पापको प्रत्यक्ष थे और आपकी सेवा हेतु सदा तत्पर रहते थे। आपने