________________ [ 137 ] प्राचार्य द्वारा अनावश्यक किया गया है, प्रामाणिकता पूर्वक जिनमन्दिर ऐसा लिख देते तो क्या होता? यहां जिन मन्दिर के विषय में "त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र" के रचयिता प्राचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि महाराज का नाम देकर प्राचार्य ने स्वयं को मन्दिर के मामले में भैलिप्त रखना चाहा है, चूकि स्थानकपंथी भक्तगण उनसे चौंक न उठे। किन्तु मंदिर की बात पूज्यपाद हेमचन्द्राचार्य महाराज के नाम पर लिखकर भी प्राचार्य बच नहीं सकते, सत्य तो स्वीकारना ही चाहिए, क्योंकि "त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र" को स्वयं उन्होंने ही प्रामाणिक ग्रंथ बताया है / यथा xxx यह है आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा विरचित त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र का उल्लेख जो पिछली आठ शताब्दियों से भी अधिक समय से लोकप्रिय रहा है। [ खंड 2, पृ० 56 ] 800 मीमांसा-उक्त बातों से जिन प्रतिमा और जिन मंदिर की प्रामाणिकता सिद्ध होते हुए भी प्राचार्य अंधकार में रहना क्यों पसन्द करते हैं ? यह उनकी प्राचार्य पद की गरिमा के बिलकुल प्रतिकूल है। पिछले चार पांच सौ वर्षों में जितना भी मूर्ति का विरोध हुआ है, उसमें इस तथ्य की ओर ध्यान नहीं दिया गया कि मूर्ति-मूर्तिमान का स्मारक है, न कि जिस धातु की बनी है उसका। स्वयं के फोटो बड़े चाव से खिचवाने वाले यदि वे अपने अन्दर झाँककर एक बार देखें तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। -डा० श्री हुकमचन्द भारिल्ल