________________ [ 126 ] धर्मचक्र नभमण्डल में उनके आगे आगे चलता है / इस प्रकार के अनेक गहन तथ्य हैं, जिनके सम्बन्ध में गहन शोध की आवश्यकता है। मीमांसा-"केवलज्ञान के बाद भगवान श्री महावीर स्वामी चतुमुखी दृष्टिगोचर होने लगे थे"- इस तथ्य में प्रतिमा का सिद्धान्त समाया हुअा है, क्या प्राचार्य इस सत्य को स्वीकार करेंगे ? और प्रस्तुत में प्राचार्य स्वयं कह रहे हैं कि-"इस प्रकार के अनेक गहन तथ्य हैं, जिनके सम्बन्ध में गहन शोध की आवश्यकता है," स्वयं आचार्य द्वारा लिखित इस बात पर से मालवणियाजी का कथन "नये तथ्यों की संभावना अब कम ही है" सर्वथा अप्रमाणिक और झूठ ही सिद्ध होता है / साथ ही साथ मुख्य संपादक श्री गजसिंहजी द्वारा कथित "घोर परिश्रमी" प्राचार्य स्वयं क्यों उक्त विषयों में गहन शोध नहीं करते हैं ? प्राचार्य हस्तीमलजी ने "संभव है" ऐसा लिखकर प्राचीन जैनाचार्यों के कथन को अप्रमाणिक करते हुए पौराणिक गपौड़ों को भी मान्यता दी है एवं जिनमन्दिर और जिनप्रतिमा आदि के विषय में ऐतिहासिक शिलालेखों आदि अवशेष विशेषों के सत्य होते हुए भी प्राचार्य ने अपने इतिहास में गलत एवं कल्पित जो बातें लिखी हैं, इन बातों का मालवणियाजी को अगर थोड़ा सा भी पता होता तो प्राचार्य द्वारा लिखित अप्रमाणिक इतिहास की प्रशंसा करने का साहस वे नहीं करते / इस तथ्य को मालवणियाजी सर्वथा भूल ही गये हैं कि कोई भी स्थानकपंथी चाहे वह आचार्य पदारूढ़ क्यों न हो, जैन धर्म विषयक सत्य और प्रामाणिक इतिहास लिख ही नहीं सकता, क्योंकि जैनधर्म के इतिहास के मूल में जिनमंदिर और जिनप्रतिमा का एक अनूठा ही स्थान है, जिन से स्थानक पंथियों को दुश्मनी है / ___ अंग्रेज विद्वान डा० हर्मन जैकोबी के विषय में प्राचार्य हस्तीमलजी निम्न बात लिखते हैं, इससे * नये तथ्यों की संभावना अब