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________________ [ 125 ] साथ उक्त निर्णय उन्होंने दे दिया हो, क्योंकि इतिहास में जगह जगह पर “यह विचारणीय है", "इस पर विशेष प्रकाश इतिहासज्ञ डालेंगे," इस प्रकार लिखकर अनेक प्रश्नों को इतिहासकार प्राचार्य हस्तीमलजी ने अपूर्ण एवं अनिर्णित ही छोड़ दिया है / यथा खंड-१ (पुरानी आवृत्ति ) 'अपनी बात' में पृ० 17 पर भगवान श्री महावीर स्वामी का रात्रि विहार एवं ब्राह्मण को अर्धवस्त्रदान आदि बातों के विषय में प्राचार्य लिखते हैं कि 444 इन सब की संगति क्या हो सकती है ? इस पर गीतार्थ गंभीरता से विचार करें।xxx __ मीमांसा-मुख्य सम्पादक गजसिंहजी प्राचार्य हस्तीमलजी को अथाहज्ञानी, घोर परिश्रमी आदि अत्युच्चकोटि के गुणों के मालिक कहते हैं, कथित गुणों से युक्त प्राचार्य ने उक्त विषयों को अन्य के भरोसे क्यों छोड़ा ? "अथाहज्ञानी" (! ) प्राचार्य स्वयं ने इस पर गंभीरता से विचार क्यों नहीं किया ? ऐसी दशा में गजसिंहजी द्वारा की गयी प्राचार्य की खुशामद क्या आत्मवंचक नहीं ठहरती ? और इस बात से मालवरिणयाजी का भी भ्रम नष्ट हो गया होगा। जिसको बौद्धधर्म सम्बन्धित बताया जाता है, ऐसे "बौद्ध धर्मचक्र" और चतुर्मुख सिंहाकृति वाला सारनाथ के स्तंभ के विषय में प्राचार्य खंड-२, पृ० 451 पर लिखते हैं कि xxxसिंह का संबंध बुद्ध के साथ उतना संगत नहीं बैठता जितना कि भगवान महावीर के साथ / भगवान महावीर का चिन्ह ( लांछन ) सिंह था और केवलज्ञान की उत्पत्ति के पश्चात् भगवान महावीर के साथ-साथ सिंह का चिन्ह भी चतुर्मुखी दृष्टिगोचर होने लगा था। सिंह चतुष्टय पर धर्मचक्र इस बात का प्रतीक है कि जिस समय तीर्थंकर विहार करते हैं, उस समय
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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