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________________ [ 105 ] स्याद्वाद पूत दृष्टिवाले को जानना चाहिए कि यहां भगवान को द्रव्यस्तव जनित शुभभाव ही अनुमोदनीय है, न कि तद्विषयक हिंसा / जैसे सार्मिक भक्ति के पीछे एवं दया पलवाने के पीछे साधु को सार्मिक भक्ति या जीवदया अभिप्रेत-अनुमोदनीय है, न कि चौका विषयक हिंसा तथा जैसे उपाश्रय बंधवाने की प्रेरणा के पीछे साधु को धर्म की आराधना अभिप्रेत है, न कि तद्विषयक हिंसा, वैसे ही गृहस्थों द्वारा होती पुष्प प्रादि से भगवान की पूजा में साधु को द्रव्यपूजा द्वारा शुभ भाववृद्धि अनुमोदनीय है, न कि पुष्पादि विषयक हिंसा, यह भूलना नहीं चाहिए / इसी प्रकार द्रव्यस्तव की अनुमोदना के पीछे भो गभित रीति से प्राप्त भगवान को द्रव्यपूजा से जनित शुभभाव की अनुमोदना ही अभिप्रेत है, न कि प्रारम्भ की अनुमोदना / ऐसे ही भगवान को द्रव्यस्तव अनुमोदनीय और अभिप्रेत है, क्योंकि समवसरण में राजा एवं अमात्यों द्वारा होता बलिउपहार एवं भरत चक्रवर्ती आदि द्वारा निर्मित जिनमंदिर और मूर्तिपूजा के विषय में भगवान ने कभी भी निषेध नहीं किया है और न अनुचित भी कहा है / इस विषय को लघुहरिभद्र न्यायविशारद पूज्य यशोविजयजी उपाध्याय महाराज अपने "उपदेश रहस्य" नामक ग्रंथ में अनुमान प्रमाण से भी इस प्रकार सिद्ध करते हैं / यथा 444 द्रव्यस्तवो भगवदनुमतिविषयः योग्यप्रज्ञाप्ये भगवदनिवारितत्वात्, यन्नवं तन्नैवं यथा कामादयः, यदि च भगवानेनं नान्वमोदयिष्यतदा निराकरिष्यत्, अन्यथा योग्ये निषेध्यम् अनिषेध्योपदेशान्तरदाने तदनुमतिप्रसंगात् / 808 अर्थात्-द्रव्यपूजा भी भगवान को अभिप्रेत [ मान्य-इष्टअनुमति का विषय ] है / अगर भगवान को द्रव्यपूजा ( द्रव्यस्तव ) अनिष्ट-असहमत होता तो वे काम-भोग की तरह इसका भी इन्द्रादि.
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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