________________ __ [ 104 ] मठ-स्थानक-उपाश्रयादि बनवाने की प्रेरणा करते हैं और स्थानक बनवाने वालों की प्रशंसा-सराहना अनुमोदना भी करते हैं। प्रतः "प्रश्न व्याकरण" कथित अहिंसा विषयक बोध पाकर स्वयं प्राचार्य को ऐसा प्रतिपादन करना चाहिए कि मठ-स्थानक-उपाश्रय बंधवाना अधर्म है यानी पाप है, ताकि उनके भक्त स्थानक बनवाने की हिंसामय पाप प्रवृत्ति से बच सकें। जिनमन्दिर तथा जिनपूजा में हिंसा होने से पूजादि को पाप रूप कहने वाले प्राचार्य को सामिक भक्ति, प्रीतिभोज, श्रावक सम्मेलन, जीवानुकम्पा, पुस्तक छपवाना, भक्तों को मीलों की दूरी से बुलवाना, स्थानक बनवाना आदि कार्य भी पाप रूप होने के कारण, इन्हें त्यागना चाहिए / "प्रश्न व्याकरण" के उपदेश से स्वयं प्राचार्य ही क्यों विपरित चल रहे हैं ? आगे पीछे के संदर्भ एवं तात्पर्य को छोड़कर ऐकान्तिक रीत से "प्रश्न व्याकरण आगम" के नाम से मंदिर एवं जिन प्रतिमादि सत्कार्यों को कोसने की प्राचार्य की प्रवृत्ति उनमें स्याद्वाद परिणत मति का अभाव ही प्रगट करती है। एकान्ते शरण्य, विश्ववंद्य तीर्थंकर परमात्माओं की उपस्थिति में भी पुष्पवृष्टि, चंवर ढुलाना, सुगंधित जल का छिड़कना, देवदुदुभि बजना आदि होता था, अहिंसा मियों को यह भूलना नहीं चाहिए कि इसमें वायुकायादि की हिंसा होती होगी फिर भी इन प्रवृत्तियों का काम-भोग की तरह भगवान ने निषेध नहीं किया है, एवं श्रेणिक आदि राजा महाराजाओं का चतुरंगी सेना और सर्व ऋद्धि-ठाठ से प्रभुवंदना के लिये जाने में भी हिंसा तो होती ही है, फिर भी ऋद्धि-ठाठ पूर्वक वन्दन हेतु आने को भगवान ने निषेध नहीं किया है।