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________________ [ 83 ] स्थानकपंथो संत एवं पंडित चैत्य शब्द का अर्थ करने में कैसी दगाबाजी करते हैं यह देखिये / श्री उववाई सूत्र में अंबड श्रावक का अधिकार प्राता है, जो पहिले सन्यासी था। जब श्री महवीर स्वामी के समक्ष बारह व्रत धारण किये तब उसने बारह व्रत रूप महल की नींव के समान 'सम्यग्दर्शन व्रत' सर्वप्रथम स्वीकार किया था। वह श्री महावीर भगवान के सामने यह प्रतिज्ञा करता है कि 444 णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंत चेइयाणि वा वंदिता वा नमसंति वा। [ श्री उववाई सूत्र ] xxx अर्थात्-वीतराग श्री अरिहंत तथा अरिहंत का (चैत्य यानी ) जिन प्रतिमा वांदवा कल्पे अन्य नहीं। उक्त सूत्र का स्थानकपंथी संत अमोलक ऋषि अप्रमाणिक एवं व्याकरण और शब्द कोष निरपेक्ष अर्थ करते हैं कि 80 फक्त अरिहंत और अरिहंत के [चैत्य यानी] साधु को ही वन्दन करना, नमस्कार करना यावत् सेवाभक्ति करना कल्पता है। [उववाई सूत्र, हिन्दी अनुवाद, पृ० 163] xxx मीमांसा-यहां चैत्य का कल्पित अर्थ साधु किया है, जो स्वमतिकल्पित एवं शास्त्र निरपेक्ष है। क्योंकि श्री भगवती सूत्र में असुरकुमार देवता सौधर्म देवलोक में जाते हैं, तब एक अरिहंत दूसरा चैत्य अर्थात् जिनप्रतिमा और तीसरा अनगार यानी साधु ( मुनि ) इन तोनों का शरण करते हैं ऐसा कहा है, यत. xxx नन्नस्थ अरिहंते वा अरिहंत चेइयाणि वा भावी अप्पणो अणगारस्स वाणिस्साव उड्ढे उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो।xxx
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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