________________ [ 2 ] सुलभ अर्थ को छोड़कर, एकान्तमार्ग का आश्रय करके चैत्य का अर्थ कहीं ज्ञान, कहीं साधु, कहीं कामदेव की प्रतिमा आदि कर देते हैं, जो अप्रमाणिक है / ज्ञान के लिये शास्त्र में कहीं भी चैत्य शब्द नहीं लिखा है, कि मतिचैत्य, श्रुतचैत्य इत्यादि / एवं शब्दकोष और व्याकरण में साधु के लिये निर्ग्रन्थ, श्रमण, मुनि आदि शब्द प्रसिद्ध है न कि चैत्य / पूज्य हेमचन्द्राचार्य महाराज ने कोष में 'चैत्य' शब्द का अर्थ जिनप्रतिमा एवं जिनमंदिर किया है, यथा "चैत्यं जिन बिम्बं तदौकः / " "अरिहंत चेइयाणं" शब्द का अर्थ श्री आवश्यक सूत्र के पाँचवें कायोत्सर्ग नामक अध्ययन में 'जिन प्रतिमा' ऐसा किया है, यथा "अर्हन्तः तीर्थंकराः, तेषां चैत्यानि प्रतिमालक्षणानि"। नवांगी टीकाकार पूज्य श्री अभयदेवसूरिजी महाराज ने 'चैत्य' शब्द का अर्थ "इष्ट देव की प्रतिमा" ऐसा किया है। यथा "चैत्यम् इष्टदेव प्रतिमा" [ भगवती सूत्र, शतक 2, उद्देश 1] प्रवचन सारोद्धार की वृत्ति में तथा सूर्य प्रज्ञप्ति में चैत्य का अर्थ जिनप्रतिमा तथा उपचार से जिनमंदिर ऐसा किया है। _आचार्य हस्तीमलजी ने चैत्य शब्द का शास्त्र कथित अर्थ ढूढा होता तो स्वयं को और अन्य को भ्रम में रखने का पर्दा फाश हो सकता था।