________________ प्रस्तावना 21 इसमें से पहली पांच के तो रचनाकाल उपलब्ध हैं / शेष चार की खोज इन पांच के आधार पर सम्भव है। जिन पांच रचनामों पर रचनाकाल दिया गया है, वे सब प्रौढ़ रचनाएं हैं। इनके आधार पर हेमरतन का रचनाकाल वि०स० 1636 से 1673 के बीच निश्चित हो जाता है / इस प्रकार पहली रचना (1636) और पांचवीं रचना के बीच 37 वर्षों का अन्तर है / इनके आधार पर इन 37 वर्षों के समय के तीन कालों में-१६३६, 1645 और 1673 हेमरतन की सभी रचनामों को स्थापित किया जा सकता है / हेमरतन के रचना-विकास (मानसिक-विकास) के ये आदि, मध्य और अन्तिम अथवा प्रारम्भ, विकास और उत्थान की स्थितियां मानी जा सकती हैं। प्रादि और मध्य के बीच लगभग दस वर्षों का और मध्य पोर अन्तिम के बीच 28 वर्षों का अन्तर है / 28 वर्षों का समय उसके चरम विकास का द्योतक है / इसी काल में हेमरतन की अन्तिम और महत्त्वपूर्ण रचनाएँ पूरी हई होंगी। कवि ने अपनी रचनाओं में कहीं-कहीं अपनी रचना सम्बन्धी योजना की पोर भी संकेत किया है; जैसे 'अभयकुमार चउपई' में उसने लगभग सात विषयों की रचनाएं प्रस्तुत करने का संकेत किया है: दान, सील, तप, भावना, चारु, चरित्र, कहेस / क्रोध, मान, माया, वली, लोभाविक, पभणेस / / इसमें दान, शील, तप, मान, क्रोध, माया और लोभ ये सात विषय स्पष्ठ हो जाते हैं / लोभादिक कहने से चारों विकारों में शेष काम भी आ जाता है। इस प्रकार ये पाठ विषय पाठ रचनाओं की ओर संकेत करते हैं। इस आधार को देखते हुए वि० स० 1636 की प्रथम दो रचनाओं में भी यह स्पष्ठ हो जाता है कि 'अभयकुमार चउपई' उसके पहले की और 'महिपाल चउपई' उसके बाद की रचना है / ऐसा लगता है कि कवि ने इन्हीं विषयों को अपनी काव्य-रचना का आधार मानकर एक-एक विषय पर एक या अधिक रचनाएँ प्रस्तुत की / इनमें से एक रचना 'शीलवती कथा' का रचना काल जैन गुर्जर कविप्रो (भाग 1. पृ० 207-208) के लेखक ने वि० सं० 1603 दिया है। पर यह ठीक नहीं लगता / लेखक की मान्यता का आधार उक्त प्रति में दिया गया यह रचनाकाल है : संवत सोल त्रिरोत्तरे, पाली नयर मझारि। सील कथा साचो रची, प्रवचन वचन विचारि //