________________ गोरा बादल पनि घउपा पदमणि चउपई में भाषा को सामान्य प्रवृत्तियां और उसको शैली : पदमणि चउपई का रचनाकाल वि०सं० 1645 है अतः इसकी भाषा वि०सं० 1600 और 1700 के बीच की विकसित भाषा का रूप है। विकास-काल की दृष्टि से इसको मध्यकालीन राजस्थानी तथा क्षेत्र की दृष्टि से इसको मध्य राजस्थान की भाषा मानना चाहिये / मध्य राजस्थानी क्षेत्र राजस्थान का गोड़वाड़ का प्रदेश, उसके पूर्व में अजमेर, अजमेर से जहाजपुर-मांडलगढ, वहां से भीलवाड़ा, गंगापुर, रायपुर, मामेट, कुम्भलगढ और पुनः गोड़वाड़ के बीच का विस्तृत भू-भाग है / उस काल की मध्य राजस्थानी का क्षेत्र भी लगभग इसी के अन्तर्गत मानना चाहिये / उक्त रचना का रचयिता हेमरतन गोड़वाड़ प्रदेश में स्थित सादड़ी का निवासी था। प्रतः इस अन्य की भाषा-प्रवृत्तियां सामान्य रूप से मध्य राजस्थान की उस काल की भाषा-प्रवृत्तियां हैं, जिसके भीतर कहीं-कहीं गोड़वाड़ी की स्थानीय प्रवृत्तियों का भी समावेश है। लेखक के जैन साहित्य की परम्परामों में शिक्षित होने के कारण इस ग्रन्थ में जन शैली की भाषा-परम्परा का निर्वाह भी देख पड़ता है। इसी प्रकार वीर-रस की रचना होने के कारण इसमें डिंगल शैली का भी समावेश है :1. मध्य राजस्थानी की भाषा-प्रवृत्तियां(१) शब्द के मादि में प्रकार के स्थान पर मारवाड़ी इ-कार की प्रवृत्ति : इधकी (78 D अधकी); इसउ (227); खिण (24 - क्षण); खित्री (381 क्षत्रीय); सिबद (४३९=शब्द) (2) कहीं-कहीं 'इ' तथा 'उ' के स्थान पर 'ए' तथा 'प्रो' पोर 'ए' तथा 'ओ' के स्थान पर 'ई' तथा 'उ' की गुण-वृति; (क) जिसडे (४८६)-जेसु (10); करियो (४)-करेयो (431) जीपिसु (४६५)-जीपेशां (404); जीता (५६६)जेत (514) दिष्टे (155 B,C)-दीठ (६९)-प्रेठि (270) (ख) सुहामणी (१६८)-सोहामणी (DE); सुगंद (266) सौगंध (E); फुजदार (२८६)-फौजदार; फोफल (३३०)पुंगफल, पुष्पफल; बुल्लइ (३६७)-बोलइ (386); होई (१००)-होइ (33), हूइ (364)