________________ सयोगकेवली गुणस्थान मूक केवली - जिन सयोगकेवलियों को वाणी का योग नहीं अर्थात् उनकी दिव्यध्वनि नहीं होती, उन्हें मूक केवली कहते हैं। ___ अंतःकृत केवली- ध्यानारूढ़ अवस्था में विराजमान जिन मुनिराजों को पूर्वभव या इस भव का वैरी देव अथवा विद्याधरादि उठाकर आकाश में ले जाते हैं और ऊपर से समुद्र या अग्नि में अथवा पहाड़ पर फेंक देते हैं। ऐसे अत्यंत प्रतिकूल अवसरों पर आकाश से नीचे समुद्र या अग्नि में गिरने से पहले अथवा पहाड़ से टकराने के पहले ही शुक्लध्यान से श्रेणी मांडकर आकाश में ही सयोगकेवली होकर अंतर्मुहूर्त में सिद्धपद प्राप्त कर लेते हैं; उन्हें अंतःकृत केवली कहते हैं। जिन्होंने संसार का अंत कर दिया है और जो आठ कर्मों का अंत अर्थात् विनाश करते हैं, वे अंतःकृत केवली कहलाते हैं। उसका यह अर्थ है कि जो अंतःकृत होकर सिद्ध होते हैं, निष्ठित होते हैं व अपने स्वरूप से निष्पन्न होते हैं: वे अंतःकृतकेवली है। उपसर्ग केवली - मुनि-अवस्था में उपसर्ग हो, उस उपसर्ग अवस्था का नाश होते ही जिन्हें केवलज्ञान प्राप्त होता है; उन्हें उपसर्ग केवली कहते हैं। जैसे मुनि गुरुदत्त, हनुमान पर उपसर्ग हुआ था; तत्पश्चात् उन्हें केवलज्ञान हो गया था। समुद्घातगत केवली - जिन सयोगी जिनेन्द्र परमात्मा के आयु कर्म की स्थिति कम हो और वेदनीयादि तीन अघाति कर्मों की स्थिति अधिक हो तो उन्हें आयुकर्म की स्थिति के बराबर अन्य तीन कर्मों की स्थिति करने को समुद्घात कहते हैं; ऐसे समुद्घात को करनेवाले तेरहवें गुणस्थानवर्ती जिनेन्द्र को समुद्घातगत केवली कहते हैं। __पाँच कल्याणकवाले तीर्थंकर - गर्भ में आने के 6 माह पूर्व ही रत्नों की वर्षा होना आदि अतिशय होते हैं। फिर गर्भ कल्याणक आदि पाँच कल्याणक होते हैं। पाँच कल्याणक का कथन भरत-ऐरावत क्षेत्र की मुख्यता से है और तीन एवं दो कल्याणकवाले तीर्थंकर विदेहक्षेत्र में ही होते हैं; इतना विशेष समझना।