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________________ 240 गुणस्थान विवेचन यह कथन कर्मभूमि के मनुष्य आयु की उत्कृष्ट स्थिति की मुख्यता से किया है। मध्यमकाल - एक अंतर्मुहूर्त और आठ वर्ष तथा आठ अंतर्मुहूर्त कम एक पूर्व कोटि काल के बीच जितने भी भेद होते हैं; वे सर्व मध्यम काल के प्रकार जानना चाहिए। जैसे दो, तीन, चार आदि अंतर्मुहूर्त अथवा एक, दो, तीन आदि दिन या महीना या वर्ष यथासंभव लगा लेना चाहिए। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - सकल परमात्मा जिनेन्द्र, तेरहवें गुणस्थान से नियमपूर्वक चौदहवें अयोगकेवली गुणस्थान में ही गमन करते हैं। ___ आगमन - मात्र क्षीणमोह गुणस्थान से ही सयोगकेवली गुणस्थान में आगमन होता है। विशेष अपेक्षा विचार - 1. यदि सयोगकेवली परमात्मा को तीर्थंकर नामकर्म का उदय हो तो उनके जन्म के दस, तीर्थंकर प्रकृति नामकर्म के उदय के निमित्त से समवसरण की रचना काल में केवलज्ञान के दश अतिशय, देवकृत चौदह अतिशय, आठ प्रातिहार्यादि सर्व 42 अलौकिक वैभव/अतिशयों का सहज संयोग होता है। 2. सभी सयोगकेवली परमात्माओं को क्षायिक ज्ञानादि अनंत चतुष्टय की प्राप्ति नियम से होती है। 3. सामान्य मनुष्यों की तरह सयोगकेवली के कवलाहार नहीं होता; परन्तु नोकर्माहार होता है; जिससे परमौदारिक शरीर की स्थिति दीर्घकालपर्यंत एक-सी बनी रहती है। रोग तथा जन्म-मरणादि अठारह दोष भी नहीं होते एवं असाता जन्य बाधायें नहीं होती। 4. सयोगकेवली परमात्मा कई प्रकार के होते हैं। पंचकल्याणकवाले तीर्थंकर केवली, तीन कल्याणकवाले तीर्थंकर केवली, दो कल्याणकवाले तीर्थंकर केवली, मूककेवली, अंतःकृत केवली, उपसर्ग केवली, सामान्य केवली, समुद्घात केवली, सातिशय केवली, अनुबद्ध केवली अर्थात् सतत केवली आदि। (जैनेन्द्र शब्दकोश भाग-२, पृ. 157)
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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